संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी, जिसे आमतौर पर USAID कहा जाता है, अब मार्को रुबियो के नेतृत्व में एक नई दिशा की ओर अग्रसर हो रही है। रुबियो को एजेंसी के कार्यवाहक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है, जबकि वह अमेरिकी राज्य विभाग में बड़े बदलावों के तहत इसका विलय कर रहे हैं।
कई विशेषज्ञों और आलोचकों का मानना है कि इस विलय से USAID की स्वतंत्रता पर खतरा मंडरा सकता है। रूढ़िवादी और अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह एजेंसी अपने मानवीय सहायता के वितरण के लिए जानी जाती है। इसका राज्य विभाग के अंतर्गत आना, मानवीय सहायता के राजनीतिकरण की चुनौतियों को बढ़ा सकता है।
इस सिलसिले में आलोचकों का कहना है कि विलय का यह निर्णय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के उस बड़े योजना का हिस्सा है जो कार्यकारिणी शक्तियों के केंद्रीकरण की ओर इंगित करती है। उन पर आरोप है कि वे संवैधानिक आत्मनिर्भरता को जोखिम में डाल रहे हैं।
कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि USAID का अन्यथा स्वतंत्र कार्य क्षेत्र उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी बनाता है। लेकिन, इस विलय के साथ उसकी प्रभावशीलता पर प्रश्नचिन्ह लग सकते हैं। ये खतरे ना सिर्फ अमेरिकी संस्कृति के लिए नए हैं, बल्कि विश्वस्तर पर मानवीय सहायता की पहुंच को भी प्रभावित कर सकते हैं।
तो आने वाले समय में देखना होगा कि इस विलय के परिणाम क्या होते हैं। क्या USAID अपनी स्वतंत्रता और मूल उद्देश्यों को बनाए रख पाएगा? या फिर राजनीति के दांव-पेंच में फंसकर इसे भी एक नया मोड़ मिलेगा?