8 लाख महिला लाभार्थियों को इस महीने से 1,500 नहीं, सिर्फ 500 रुपये. इतना बड़ा कट—यही हुआ महाराष्ट्र की माझी लाडकी बहिण योजना में, और इसी ने सबसे तीखी बहस छेड़ दी है. विपक्ष इसे चुनाव बाद पलटी बताते हुए हमले कर रहा है, तो सरकार कहती है—जो वाकई पात्र हैं, वही पैसा पाएंगे और कुल लाभ 1,500 रुपये से ऊपर नहीं जाएगा.
यह योजना जून 2024 में शुरू हुई थी. मकसद था 21 से 65 साल की महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये देकर खर्च की आज़ादी, बेहतर पोषण और परिवार में उनकी भूमिका को मजबूत करना. लक्ष्य करीब 2.5 करोड़ महिलाओं तक सहायता पहुंचाने का था. अब नियमों की सख्त जांच-पड़ताल और ‘कुल लाभ कैप’ लागू होने से तस्वीर बदल गई है.
महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने साफ किया—1,500 रुपये प्रति माह अधिकतम सीमा है, जो राज्य की सभी योजनाओं से मिलकर बनती है. यानी अगर किसी महिला को किसी अन्य सरकारी योजना से 1,000 रुपये पहले से मिल रहे हैं, तो लाडकी बहिण के तहत उसे 500 रुपये ही दिए जाएंगे. यही वह कारण है जिसकी वजह से 8 लाख महिलाओं की मासिक राशि 1,500 से घटकर 500 हो गई.
पात्रता शर्तें भी सख्ती से लागू की जा रही हैं. समीक्षा के दौरान उम्र सीमा 18 से 65 वर्ष लागू की गई है (शुरुआत में 21-65 का उल्लेख था), महाराष्ट्र का निवासी होना जरूरी है, परिवार की वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम होनी चाहिए, परिवार में कोई सरकारी नौकरी में नहीं होना चाहिए और लाभार्थी के नाम पर चार पहिया वाहन नहीं होना चाहिए. सरकार ने सभी लाभार्थियों के लिए e-KYC भी अनिवार्य कर दिया है—18 सितंबर 2025 से दो माह की समयसीमा देकर.
वित्तीय पक्ष भी बड़ा संकेत देता है. 2025–26 के लिए इस योजना का बजट 46,000 करोड़ रुपये से घटाकर 36,000 करोड़ कर दिया गया है. राज्य का ऋण 2025–26 में 9.3 लाख करोड़ रुपये तक जाने का अनुमान है. ऐसे में सरकार कह रही है कि वह खर्च नियंत्रित रखते हुए वास्तविक लाभार्थियों तक पैसा पहुंचाएगी. उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने संकेत दिया कि जांच-पड़ताल के बाद 10–15 लाख नाम कम हो सकते हैं.
यहीं विपक्ष सवाल उठा रहा है. उसका आरोप है कि करीब 17 लाख महिलाओं को सूची से बाहर कर दिया गया है और 8 लाख का लाभ घटा दिया गया—यह सीधा-सीधा दायरा छोटा करना है. विपक्ष इसे चुनावी वादे से पलटना बता रहा है. सरकार का जवाब है—मानदंडों में मूल बदलाव नहीं, सिर्फ सत्यापन कड़ा किया गया है; पात्र कोई भी महिला बाहर नहीं की गई.
जमीनी असर समझना आसान है. जिन परिवारों ने 1,500 रुपये को महीने की स्थिर सहायता मानकर खर्चों की योजना बनाई थी, उन्हें अब 500 रुपये पर टिकना होगा—अगर वे पहले ही किसी दूसरी योजना से 1,000 रुपये पा रहे थे. जिनके पास कोई दूसरी सहायता नहीं है, उन्हें 1,500 रुपये मिलते रहेंगे. पर जो सूची से बाहर हुए, उनके लिए यह सीधा झटका है.
यह भी याद रखें कि ‘कुल लाभ कैप’ का मतलब है—राज्य की योजनाओं का समेकन. प्रशासन के मुताबिक इससे डुप्लीकेट लाभ, फर्जीवाड़ा और ओवरलैप घटेगा. डेटा-मिलान, e-KYC और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए एक ही लाभार्थी को कई चैनलों से अधिक भुगतान मिलने की गुंजाइश कम होगी. लेकिन इस तरह की सफाई में एक बड़ा जोखिम रहता है—वास्तव में पात्र लोग कागजी खामियों की वजह से छूट न जाएं.
एक और फर्क: पात्रता के नियमों में चार पहिया स्वामित्व और परिवार में सरकारी नौकरी जैसी कसौटियाँ कड़ाई से जोड़ी गई हैं. ग्रामीण इलाकों में अक्सर पुरानी, निष्क्रिय या कर्ज पर खरीदी गयी गाड़ियों के कागज परिवार के नाम पर होते हैं. ऐसे मामलों में भी वंचित होने का खतरा बनता है. इसलिए e-KYC के दौरान सही दस्तावेज और शपथपत्रों का ध्यान रखना जरूरी होगा.
समय का चुनाव भी चर्चा में है. विधानसभा चुनावों से पहले शुरू हुई योजना आज सख्त जांच और बजट कटौती के दौर में है. विपक्ष कह रहा है—वादा बड़ा, अमल छोटा. शासन पक्ष इसे राजकोषीय अनुशासन और ‘सही लक्ष्यीकरण’ की उपलब्धि बता रहा है. सच यह है कि दोनों ही बातें साथ-साथ चल रही हैं—राजकोष पर दबाव भी है और डेटा-आधारित छँटाई भी.
दूसरे राज्यों में भी महिला भत्ता योजनाएं चलती हैं. मध्य प्रदेश में ‘लाड़ली बहना’ के तहत मासिक सहायता 1,250 रुपये तक पहुंचाई गई. कुछ जगहों पर आय, संपत्ति और परिवार की स्थिति देखकर राशि तय होती है. महाराष्ट्र का यह ‘कैपिंग मॉडल’ उसी दिशा का एक और संस्करण है—जहां सरकारें ज्यादा योजनाओं को जोड़कर कुल सहायता पर सीमा तय कर रही हैं ताकि कुल खर्च नियंत्रित रहे.
कितना बड़ा वित्तीय असर हो सकता है? मान लें 1 करोड़ महिलाओं को औसतन 1,500 रुपये देने हों, तो साल का बिल 18,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है. 2.5 करोड़ के शुरुआती लक्षित दायरे में यह बोझ बहुत बड़ा हो जाता. कैपिंग और छँटाई से यही बिल कम होगा—यही तर्क सरकार दे रही है, और इसी जगह विपक्ष को ‘कवरेज कट’ दिख रहा है.
अब आम महिला को क्या करना चाहिए? सबसे पहले e-KYC समय पर पूरा करें. आधार से बैंक खाता सही से लिंक हो, मोबाइल नंबर सक्रिय हो और दस्तावेज अपडेट हों. अगर नाम सूची से बाहर दिखता है, तो अपने तहसील या जिला महिला एवं बाल विकास कार्यालय में आपत्ति दर्ज कराएँ, आवेदन की रसीद और पात्रता का सबूत साथ लगाएँ. कई बार डेटा-मिलान की गलतियों से भी नाम कटते हैं, जिन्हें अपील में सुधारा जा सकता है.
नीतिगत रूप से यह कदम एक बड़े ट्रेंड की तरफ इशारा करता है—‘कम लेकिन लक्षित और समेकित सहायता’. इससे राजकोष को राहत मिलती है, पर जोखिम यह है कि डेटा-आधारित फिल्टरिंग में कमजोर दस्तावेज वाले वंचित रह जाएं. यही वह महीन रेखा है जहां पारदर्शिता और संवेदनशीलता दोनों की जरूरत है.
फिलहाल तस्वीर यही बताती है—योजना का ढांचा बरकरार है, लेकिन उसकी पहुंच और मासिक राशि पर ‘कुल लाभ’ की नई छत लग गई है. 8 लाख महिलाओं के लिए रकम घटकर 500 हुई, विपक्ष इसे कटौती और कवरेज में कमी बता रहा है, और सरकार कह रही है—ना मानदंड बदले, ना हक छीना; बस गलत लाभ बंद किए. असल परीक्षा e-KYC की डेडलाइन, अपील प्रक्रिया और जमीन पर भुगतान की नियमितता से होगी.