उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में, शुक्रवार की रात एक भीषण आगजनी की घटना ने हृदय विदारक दृश्य उत्पन्न किया। इस भयानक हादसे का शिकार बने 10 मासूम नवजात शिशु, जिन्होंने इस दुनिया में अभी कदम नहीं रखा था। यह समाचार जितना भयावह है, उतना ही यह पूरे देश को हिला देने वाला है। शुक्रवार को रात करीब 10:45 पर हुई इस घटना ने पूरे अस्पताल को शोक में डूबो दिया है। अस्पताल के नवजात इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में लगी इस आग ने 16 अन्य नवजातों को घायल कर दिया। सरकार इस मामले में हर संभव मदद का आश्वासन दे रही है, और प्रभावित परिवारों की दुख में साथ खड़ी है।
अग्निकांड को लेकर सरकार ने तेजी से कदम उठाए हैं। इस हादसे की जांच के लिए एक चार सदस्यीय समिति गठित की गई है। इसकी अध्यक्षता मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के निदेशक जनरल करेंगे। यह समिति आग लगने के असली कारणों को खोजने के साथ ही किसी भी स्तर पर हुई लापरवाही की जांच करेगी। माना जा रहा है कि 7 दिन के भीतर यह समिति अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अग्निकांड के शिकार परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और इसे शॉर्ट सर्किट के वजह से हुई तकनीकी गड़बड़ी बताया। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
वृत्तीयता के बीच, अस्पताल प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए हैं। प्रारंभिक जांच के दौरान कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया था कि अस्पताल के फायर एक्सटिंग्विशर में तकनीकी गड़बड़ी थी, लेकिन प्रशासन ने इस आरोप को सिरे से नकार दिया। कॉलेज के प्रधान, डॉ. नरेंद्र सिंह सेंगर और डिप्टी मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने यह साफ किया कि अस्पताल ने फरवरी में फायर सेफ्टी ऑडिट कराया था, और जून में मॉक ड्रिल पंचायती की थी। उन्होंने कहा कि अग्निशामक उपकरण सही स्थिति में थे और किसी तरह का कोई तकनीकी कमी नहीं थी।
इस हादसे के घावों को भरने के प्रयास में, राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। हर शिकार परिवार को 5 लाख रुपये की सहयोग राशि देने की घोषणा की गई है। इस निर्णय का उद्देश्य पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता पहुंचाना और उनके दुख के समय में उन्हें यह यकीन दिलाना कि राज्य सरकार उनके साथ खड़ी है। यह आर्थिक सहायता न केवल एक मदद है, बल्कि परिवारों के प्रति सहानुभूति का भी प्रतीक है।
मेडिकल कॉलेज के दोषियों की जांच प्रक्रिया भी तेज गति से चल रही है। उन 52 से 54 बच्चों में से जिनकी सुरक्षा सुनिश्चित की गई है, 10 की मौत की पुष्टि हुई है और 16 की जांच और उपचार जारी है। साथ ही, सात नवजातों का पोस्टmortem किया गया है, जबकि तीन अन्य के माता-पिता की पहचान अब तक नहीं हो सकी है। यह परिस्थिति दर्शाता है कि इस भयंकर अग्निकांड ने करते परिवारों में भय और अनिश्चितता का माहौल खड़ा कर दिया है।
यह घटना उन गहरे सवालों को जन्म देती है जो हमारे स्वास्थ्य व्यवस्था की तैयारियों और सुरक्षा अनुदेशों पर उठते हैं। चिकित्सा संस्थानों में स्थापित व्यवस्थाओं की स्थिति कैसे सुधारे, इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। इस प्रकार के हादसों से निपटने के लिए प्रशासन का रुख और रणनीतियों को और मजबूत बनाने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।
सरकार की तत्काल प्रतिक्रिया और इस दुखद हादसे के प्रति उठाए गए कदम यह दर्शाते हैं कि आने वाले समय में ऐसे घटनाओं से बचा जा सकता है। उत्तर प्रदेश की सरकार सक्रिय रूप से अपने वहाँ रह रहे लोगों की सुरक्षा के प्रति सावधान है और उनके जीवन के महत्व को समझती है। इस घटना ने पहले ही सबक सिखा दिया है कि सुरक्षा में किसी भी प्रकार की चूक महंगी पड़ सकती है, लेकिन इसे जिम्मेदारी से निभाते हुए हम आगामी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।