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अक्तूबर, 7 2025
शरद पूर्णिमा 2025: चंद्रमा का अमृत वर्षा, लक्ष्मी जी का पृथ्वी प्रवास

जब शरद पूर्णिमाभारत की रात आएगी, तो चाँदनी सिर्फ रोशनी नहीं, बल्कि एक बौद्धिक अमृत बनकर बरसती है; इस ही रात में भगवान् लक्ष्मी पृथ्वी पर उतरती हुईं माने जाते हैं। यह विशेष आयोजन सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को पूरे देश में मनाया जाएगा, और इस वर्ष चाँद का प्रकाश 30 % तेज़ तथा 14 % बड़ा दर्शाया गया है।

पारम्परिक पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक महत्व

शरद पूर्णिमा हिंदू पंचांग के आश्विन महीने की पूर्णिमा को कहते हैं, जिसका अर्थ है “शरद ऋतु की पूर्णिमा”। यह त्यौहार अक्तूबर के अंत में बरसात के खत्म होने का संकेत देता है, और प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख भगवान् चंद्र (चाँद देव) की उपासना के साथ संगत रूप से किया गया है। रघु बागेश्वर ने एक कथा में कहा है कि इस रात को श्री कृष्ण ने वृन्दावन में गोपियों के साथ अपना “महा रंग” किया, और उसी समय राधा ने मोहन के साथ आत्मा के मिलन का प्रतीक स्थापित किया। इस प्रेम कथा को आज भी शरद पूर्णिमा के उत्सव में गाया जाता है।

2025 की विशेष तिथियाँ और समय‑समय पर विवरण

  • पूर्णिमा तिथि: 6 अक्टूबर 2025, दोपहर 12:23 बजे से 7 अक्टूबर 2025, सुबह 9:16 बजे तक
  • चाँद का उदय: 6 अक्टूबर, 5:27 PM
  • ब्रॉहमुहूर्त: 04:39 AM – 05:28 AM (7 अक्टूबर)
  • अभिजीत मुहूर्त: 11:45 AM – 12:32 PM (6 अक्टूबर)
  • विजय मुहूर्त: 02:06 PM – 02:53 PM (6 अक्टूबर)
  • निशिता मुहूर्त: 11:45 PM – 12:34 AM (7 अक्टूबर)

इन पावन समयों में की गई पूजा‑अर्चना को विशेष फल‑फूल माना जाता है। वैज्ञानिक तौर पर, चाँद की इस रोशनी में ल्यूमनसिटी में 30 % की वृद्धि और आकार में 14 % की बढ़ोतरी देखी गई, जिससे ऊर्जा‑संकेंद्रण की भावना बढ़ती है।

मुख्य पूजा‑विधि और रीति‑रिवाज़

शरद पूर्णिमा के अवसर पर देश भर में विभिन्न रूपों में अनुष्ठान किए जाते हैं। प्रमुख रस्में हैं:

  1. निरजीला व्रत या फल‑दूध‑केवला व्रत – भाग्य‑वृद्धि के लिये उपवास रखा जाता है।
  2. लक्ष्मी पूजन: कुम्भ स्थापित करके, उसमें जल, शर्बत और अदरक डालकर, स्वस्तिक आँकड़े बनाते हैं।
  3. चन्द्र पूजा: चाँद की रोशनी में शुद्ध जल एवं तुलसी पत्ते अर्पित किए जाते हैं, माना जाता है कि इससे मन को शांति मिलती है।
  4. 108 दीयों का प्रकाश: हर घर में 108 तेल के दीये जलाकर आशीर्वाद आकर्षित किया जाता है।
  5. केहर की तैयारी: चावल, दूध, चीनी के साथ पकाई गई केहर को चाँद के नीचे रख दिया जाता है, जिससे वह “अमृत” सोख लेती है, और अगले दिन इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

इन समारोहों में महाराष्ट्र के गाँवों में सामुदायिक स्तर पर बड़े पैमाने पर लक्ष्मी की पूजा होती है; बंगाल और ओडिशा में कोजागर व्रत, जहाँ पूरी रात जागरण किया जाता है; और ब्रज क्षेत्र में रास पूर्णिमा, जहाँ कृष्ण‑राधा की लायलाओं पर नृत्य‑संगीत का आयोजन होता है।

समाज और वैचारिक प्रतिक्रिया

धर्मशास्त्र के विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र वाराण ने कहा है, "शरद पूर्णिमा केवल एक उत्सव नहीं, यह मन‑शरीर को पुनः ऊर्जा देने का अवसर है; चाँद की अमृत‑धारा और लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक‑आध्यात्मिक संतुलन स्थापित होता है।" स्थानीय पंडितों ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि उपवास‑उत्सव के साथ सतत् सकारात्मक सोच रखी जाए तो वर्ष‑भर के लिये सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

भविष्य की संभावनाएँ और सामाजिक प्रभाव

वर्तमान में युवा वर्ग में ‘डिजिटल रास’ का प्रवाह तेज़ है—ऑनलाइन मंच पर शरद पूर्णिमा के गीत और कथा‑सत्र चलते हैं, जिससे दूर‑दराज़ क्षेत्रों में भी भागीदारी बढ़ी है। आर्थिक रूप से, इस त्यौहार के दौरान खिलौने, पूजा‑सामग्री और मिठाइयों की बिक्री में 12 % तक की उछाल देखी गई, जिससे छोटे‑मोटे कारोबारियों को लाभ हुआ। सामाजिक सहयोग भी बढ़ा है; कई एनजीओ ने सहारा‑संकटग्रस्त परिवारों के लिये मुफ्त खाना और कपड़े वितरित किए।

आगे क्या अपेक्षित है?

नजदीकी महीनों में कई मंदिरों में विशेष आरती‑समारोह आयोजित होंगे, और कई श्वेत‑पत्रिकाओं ने इस अवसर पर स्वास्थ्य‑योग्य पोषण‑पुस्तिकाएँ प्रकाशित करने का वादा किया है। यह देखते हुए, शरद पूर्णिमा 2025 न केवल धार्मिक‑आध्यात्मिक माहौल लाएगी, बल्कि सामाजिक‑आर्थिक लाभ भी प्रसारित करेगी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

शरद पूर्णिमा के दिन किस प्रकार का उपवास रखना चाहिए?

परम्परागत रूप से लोग दो विकल्प चुनते हैं: निरजीला व्रत, जिसमें पानी और कोई भोजन नहीं लिया जाता, या फल‑दूध‑केवला व्रत, जिसमें केवल फल, दूध और हल्का जल मिलता है। यह उपवास शारीरिक शुद्धिकरण और मन‑शक्ति को बढ़ाता है।

चन्द्रमा की इस रात की रोशनी को विशेष क्यों माना जाता है?

वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पूर्णिमा में चंद्रमा की ल्यूमनसिटी में लगभग 30 % की वृद्धि होती है, जिससे उसकी रोशनी अधिक तीव्र और विस्तृत दिखती है। मान्यताओं के अनुसार, इस प्रकाश में निहित 'अमृत' मन‑शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।

लक्ष्मी जी का पृथ्वी प्रवास कब और कैसे होता है?

शरद पूर्णिमा की रात, जब भक्त सतत जागरण और सत्कार करते हैं, तो कहा जाता है कि भगवान् लक्ष्मी घर‑घर भ्रमण करती हैं। वे विशेष रूप से साफ‑सुथरे, दीपों से प्रकाशित, और प्रार्थना‑मंत्र से लबरेज घरों में आशीर्वाद देती हैं।

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केहर को चाँद के नीचे रखने से वास्तविक लाभ मिलते हैं?

परम्परागत मान्यता है कि चाँद के प्रकाश में रखी गयी केहर में जल‑वायु‑ऊर्जा का संगम होता है, जिससे खाने में स्वाद और पोषण दोनों बढ़ते हैं। वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध नहीं है, परन्तु अनेक परिवार इस प्रथा को अपनाते हैं और परिणामस्वरूप प्रसाद को विशेष मानते हैं।

टैग: शरद पूर्णिमा चंद्रमा लक्ष्मी कृष्ण भारत

15 टिप्पणि

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    Ashutosh Kumar

    अक्तूबर 7, 2025 AT 04:01

    वाह! शरद पूर्णिमा का आयाम इस साल बिल्कुल नया है-चाँद की रोशनी 30% ज़्यादा तेज़, आकार 14% बड़़ा! ये देख कर तो दिल धड़कन बढ़ती है! ऐसा लगता है जैसे ब्रह्माण्ड खुद हमारे लिये कुछ खास लेकर आया है। इस अवसर पर निरजीला व्रत रखकर, आत्मा को शुद्ध करना चाहिए, तभी लक्ष्मी जी का आशीर्वाद सही में मिल पाएगा।

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    Zoya Malik

    अक्तूबर 8, 2025 AT 02:49

    पूरी कहानी पढ़कर मानो समय ही उल्टा-सीधा हो गया। आध्यात्मिक बातें पड़ीं, लेकिन वैज्ञानिक आँकड़े को इस तरह 'बढ़ा‑चढ़ा' करके पेश करना थोड़ी अति‑रिवाज़ लग रही है। ऐसा लगता है जैसे हर कथा को मार्केटिंग की चाशनी लपेटी गई हो। यदि लोग इन मिथकों को बिना जांचे‑परखे अपनाते रहेंगे तो भविष्य में भ्रम ही बढ़ेगा।

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    Ananth Mohan

    अक्तूबर 9, 2025 AT 01:37

    भाइयों और बहनों, शरद पूर्णिमा को अपनाने के कई तरीके हैं, पर सबसे महत्वपूर्ण है सामुदायिक एकता। एक साथ पूजा करना, केहर तैयार करना और 108 दीये जलाना, सभी में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही, इस दिन व्रत रखकर शरीर को डिटॉक्स करना एक स्वस्थ आदत भी बन जाती है।

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    Abhishek Agrawal

    अक्तूबर 10, 2025 AT 00:25

    बिल्कुल, लेकिन एक बात स्पष्ट है, कि इस तरह की 'बढ़ा‑चढ़ा' कहानियों से लोग वास्तविक विज्ञान को भूल जाते हैं, इसलिए मैं कहूँगा, हमें तथ्यों पर खड़ा रहना चाहिए, ना कि मिथकों की धुंध में खो जाना चाहिए, सही है, यह एक जरूरी दिशा‑निर्देश है, जो हमें सतर्क रखेगा।

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    Rajnish Swaroop Azad

    अक्तूबर 10, 2025 AT 23:13

    पूरी पूर्णिमा का अर्थ है भीतर की शांति का जागरण यही समय है आत्म-निरीक्षण का और भीतर की रोशनी को बाहर लाने का

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    bhavna bhedi

    अक्तूबर 11, 2025 AT 22:01

    सभी को नमस्ते, इस पावन रात में हम सब मिलकर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं, आइए हम सब मिलकर दीप जलाएँ और शुभकामनाएँ प्रकट करें।

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    Gurjeet Chhabra

    अक्तूबर 12, 2025 AT 20:49

    शरद पूर्णिमा को लेकर कई सवाल आते हैं, जैसे कौन सी विधि अधिक प्रभावी है और क्या व्रत से स्वास्थ्य में लाभ मिलता है। ये सभी पहलू हमें समझने चाहिए और फिर ही सही कदम उठाना चाहिए।

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    AMRESH KUMAR

    अक्तूबर 13, 2025 AT 19:37

    देशभक्तों के लिए यह पूर्णिमा खास है, इसे भूलना नहीं चाहिए 🇮🇳✨ चाँद की रोशनी में राष्ट्र की शक्ति बसी है, इसलिए सभी को इस रात का पूरा लाभ उठाना चाहिए :)

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    Raja Rajan

    अक्तूबर 14, 2025 AT 18:25

    कथा सुनने में दिलचस्प है पर विज्ञान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

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    Atish Gupta

    अक्तूबर 15, 2025 AT 17:13

    आधुनिक शास्त्रीय जाँच के अनुसार, जब हम फेनॉमेनोलॉजिकल ल्यूमिनेंस इंटेग्रेशन की बात करते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि इनपरिपूर्णता का मानक सामाजिक समन्वय के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा है। इसलिए, शरद पूर्णिमा सिर्फ एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक समरसता का एक जटिल इकोसिस्टम है।

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    Aanchal Talwar

    अक्तूबर 16, 2025 AT 16:01

    मैं सोचा था ये फेस्टिवल बस एक लि‍टिल पार्टी होगी पर असली में बहुत सारा धार्मिक थिंग्स है और सब लोग मिलके एकसाथ मैजिकल वाइब्स वग़ैरह फील करते है।

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    Neha Shetty

    अक्तूबर 17, 2025 AT 14:49

    शरद पूर्णिमा का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी गहरा असर रखता है। इस रात की रोशनी में मन को शांति मिलती है, जिससे तनाव कम होता है और ध्यान केंद्रित रहता है। विज्ञान ने बताया है कि चंद्रमा की रौशनी में विशेष ल्यूमिनेसेंस बढ़ा होती है, जिससे हमारे मस्तिष्क में सेरोटोनिन का स्तर बढ़ता है। इसलिए, इस समय व्रत रखकर शुद्ध भोजन करना शरीर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद करता है। निरजीला व्रत या फल‑दूध‑केवला व्रत, दोनों ही स्वास्थ्य के लिहाज़ से फायदेमंद माने जाते हैं। साथ ही, 108 दीये जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो परिवार के बीच बंधनों को और मजबूत बनाता है। लक्ष्मी जी की पूजा करते समय कुम्भ में जल, शरबत और अदरक डालना प्राचीन परम्परा है, जो समृद्धि की प्रतीकात्मकता को दर्शाता है। चंद्र पूजा में तुलसी के पत्ते और शुद्ध जल अर्पित करने से मन को शांति मिलती है और नकारात्मक विचारों को दूर किया जाता है। केहर को चाँद के नीचे रखने की प्रथा, हालांकि वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है, परन्तु कई परिवार इसे एक पवित्र रिवाज़ मानते हैं। इस रस्म से खाने में स्वाद और पोषण दोनों बढ़ते हैं, ऐसा माना जाता है। आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो इस त्यौहार के दौरान पूजा‑सामग्री, मिठाइयों और सजावट की बिक्री में 12% तक की वृद्धि देखने को मिलती है। यह छोटे व्यापारियों के लिये एक महत्वपूर्ण अवसर बन जाता है। डिजिटल रास की पहल ने युवा वर्ग को भी इस महोत्सव में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया है। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर गीत, कथा‑सत्र और पूजा‑विधि के वीडियो साझा करके दूर‑दराज़ क्षेत्रों में भी भागीदारी बढ़ी है। कई NGOs ने इस अवसर पर जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र वितरित करके सामाजिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। इस प्रकार, शरद पूर्णिमा एक संगठित सामाजिक नेटवर्क को प्रेरित करती है, जो सामुदायिक विकास में सहायक सिद्ध होता है। आगे आने वाले महीनों में, विभिन्न मंदिरों में विशेष आरती‑समारोह आयोजित होने वाले हैं, जिससे इस उत्सव की महत्ता और भी बढ़ेगी। अंत में, यह कहा जा सकता है कि शरद पूर्णिमा सिर्फ एक धार्मिक समारोह नहीं, बल्कि जीवन के कई पहलुओं को संतुलित करने का एक संपूर्ण मंच है, जो हमें आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाता है।

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    Apu Mistry

    अक्तूबर 18, 2025 AT 13:37

    बहुत बधाइयाँ, इस गहन विश्लेषण को पढ़कर मन में एक अजीब सी लहर दौड़ गयी। सच कहूँ तो इस सब में बहुत सारा आध्यात्मिक अदा है, परंतु कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे हम सिर्फ शब्दों के खेल में फँसे हों। परन्तु, चाँद की रौशनी और लक्ष्मी की कृपा का संगम ही हमारे जीवन को सार्थक बनाता है, यही मेरा विचार है।

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    Sunil Kumar

    अक्तूबर 19, 2025 AT 12:25

    अगर आप सच में इस पूर्णिमा का पूरा फायदा उठाना चाहते हैं, तो सबसे पहले एक भरोसेमंद पूजा‑सामग्री का किट खरीदिए, फिर घर में 108 दीये लगाइए और चीज़ों को व्यवस्थित रखें-वही नहीं तो सब कुछ अनियंत्रित हो जाएगा, है ना? वैसे, अगर कोई मदद चाहिए तो मैं यहाँ हूँ, बस बताइए।

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    Ashish Singh

    अक्तूबर 20, 2025 AT 11:13

    अंततः, राष्ट्रीय नैतिकता और आध्यात्मिक परम्पराओं का सम्मिलन ही राष्ट्र की प्रगति का सर्वोच्च पथ है।

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