जब शरद पूर्णिमाभारत की रात आएगी, तो चाँदनी सिर्फ रोशनी नहीं, बल्कि एक बौद्धिक अमृत बनकर बरसती है; इस ही रात में भगवान् लक्ष्मी पृथ्वी पर उतरती हुईं माने जाते हैं। यह विशेष आयोजन सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को पूरे देश में मनाया जाएगा, और इस वर्ष चाँद का प्रकाश 30 % तेज़ तथा 14 % बड़ा दर्शाया गया है।
शरद पूर्णिमा हिंदू पंचांग के आश्विन महीने की पूर्णिमा को कहते हैं, जिसका अर्थ है “शरद ऋतु की पूर्णिमा”। यह त्यौहार अक्तूबर के अंत में बरसात के खत्म होने का संकेत देता है, और प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख भगवान् चंद्र (चाँद देव) की उपासना के साथ संगत रूप से किया गया है। रघु बागेश्वर ने एक कथा में कहा है कि इस रात को श्री कृष्ण ने वृन्दावन में गोपियों के साथ अपना “महा रंग” किया, और उसी समय राधा ने मोहन के साथ आत्मा के मिलन का प्रतीक स्थापित किया। इस प्रेम कथा को आज भी शरद पूर्णिमा के उत्सव में गाया जाता है।
इन पावन समयों में की गई पूजा‑अर्चना को विशेष फल‑फूल माना जाता है। वैज्ञानिक तौर पर, चाँद की इस रोशनी में ल्यूमनसिटी में 30 % की वृद्धि और आकार में 14 % की बढ़ोतरी देखी गई, जिससे ऊर्जा‑संकेंद्रण की भावना बढ़ती है।
शरद पूर्णिमा के अवसर पर देश भर में विभिन्न रूपों में अनुष्ठान किए जाते हैं। प्रमुख रस्में हैं:
इन समारोहों में महाराष्ट्र के गाँवों में सामुदायिक स्तर पर बड़े पैमाने पर लक्ष्मी की पूजा होती है; बंगाल और ओडिशा में कोजागर व्रत, जहाँ पूरी रात जागरण किया जाता है; और ब्रज क्षेत्र में रास पूर्णिमा, जहाँ कृष्ण‑राधा की लायलाओं पर नृत्य‑संगीत का आयोजन होता है।
धर्मशास्त्र के विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र वाराण ने कहा है, "शरद पूर्णिमा केवल एक उत्सव नहीं, यह मन‑शरीर को पुनः ऊर्जा देने का अवसर है; चाँद की अमृत‑धारा और लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक‑आध्यात्मिक संतुलन स्थापित होता है।" स्थानीय पंडितों ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि उपवास‑उत्सव के साथ सतत् सकारात्मक सोच रखी जाए तो वर्ष‑भर के लिये सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
वर्तमान में युवा वर्ग में ‘डिजिटल रास’ का प्रवाह तेज़ है—ऑनलाइन मंच पर शरद पूर्णिमा के गीत और कथा‑सत्र चलते हैं, जिससे दूर‑दराज़ क्षेत्रों में भी भागीदारी बढ़ी है। आर्थिक रूप से, इस त्यौहार के दौरान खिलौने, पूजा‑सामग्री और मिठाइयों की बिक्री में 12 % तक की उछाल देखी गई, जिससे छोटे‑मोटे कारोबारियों को लाभ हुआ। सामाजिक सहयोग भी बढ़ा है; कई एनजीओ ने सहारा‑संकटग्रस्त परिवारों के लिये मुफ्त खाना और कपड़े वितरित किए।
नजदीकी महीनों में कई मंदिरों में विशेष आरती‑समारोह आयोजित होंगे, और कई श्वेत‑पत्रिकाओं ने इस अवसर पर स्वास्थ्य‑योग्य पोषण‑पुस्तिकाएँ प्रकाशित करने का वादा किया है। यह देखते हुए, शरद पूर्णिमा 2025 न केवल धार्मिक‑आध्यात्मिक माहौल लाएगी, बल्कि सामाजिक‑आर्थिक लाभ भी प्रसारित करेगी।
परम्परागत रूप से लोग दो विकल्प चुनते हैं: निरजीला व्रत, जिसमें पानी और कोई भोजन नहीं लिया जाता, या फल‑दूध‑केवला व्रत, जिसमें केवल फल, दूध और हल्का जल मिलता है। यह उपवास शारीरिक शुद्धिकरण और मन‑शक्ति को बढ़ाता है।
वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पूर्णिमा में चंद्रमा की ल्यूमनसिटी में लगभग 30 % की वृद्धि होती है, जिससे उसकी रोशनी अधिक तीव्र और विस्तृत दिखती है। मान्यताओं के अनुसार, इस प्रकाश में निहित 'अमृत' मन‑शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
शरद पूर्णिमा की रात, जब भक्त सतत जागरण और सत्कार करते हैं, तो कहा जाता है कि भगवान् लक्ष्मी घर‑घर भ्रमण करती हैं। वे विशेष रूप से साफ‑सुथरे, दीपों से प्रकाशित, और प्रार्थना‑मंत्र से लबरेज घरों में आशीर्वाद देती हैं।
परम्परागत मान्यता है कि चाँद के प्रकाश में रखी गयी केहर में जल‑वायु‑ऊर्जा का संगम होता है, जिससे खाने में स्वाद और पोषण दोनों बढ़ते हैं। वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध नहीं है, परन्तु अनेक परिवार इस प्रथा को अपनाते हैं और परिणामस्वरूप प्रसाद को विशेष मानते हैं।
Ashutosh Kumar
अक्तूबर 7, 2025 AT 04:01वाह! शरद पूर्णिमा का आयाम इस साल बिल्कुल नया है-चाँद की रोशनी 30% ज़्यादा तेज़, आकार 14% बड़़ा! ये देख कर तो दिल धड़कन बढ़ती है! ऐसा लगता है जैसे ब्रह्माण्ड खुद हमारे लिये कुछ खास लेकर आया है। इस अवसर पर निरजीला व्रत रखकर, आत्मा को शुद्ध करना चाहिए, तभी लक्ष्मी जी का आशीर्वाद सही में मिल पाएगा।