संविधान दिवस के अवसर पर भारतीय संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित भव्य समारोह में विपक्ष को बोलने का अवसर नहीं मिला। यह आयोजन संविधान के स्वीकृति के 75वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। इसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला शामिल थे। विपक्ष की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, तृणमूल कांग्रेस के सुधीप बंदोपाध्याय तथा सीपीआई के बिनॉय विश्वाम ने स्पीकर को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की।
विपक्ष की मांग को खारिज करते हुए सरकार ने तर्क दिया कि यह आयोजन संविधान के निर्माताओं को सम्मान देने का था, और政治िक भाषणों के लिए नहीं। विपक्ष के नेताओं ने आयोजित समारोह में अपनी आवाज उठाने के लिए अनुमति मांगी थी। उनका कहना था कि संविधान जैसी महत्वपूर्ण दस्तावेज का सम्मान करते हुए, सभी पक्षों को अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए। सरकार की ओर से कहा गया कि यह कार्यक्रम एक गैर-सांप्रदायिक आयोजन के रूप में पेश किया गया था।
विपक्ष के नेताओं ने इसे समारोह के राजनीतिकरण का आरोप लगाते हुए असहमति प्रकट की। उन्होंने कहा कि ऐसे अवसर पर सभी पार्टी नेतृत्वकर्ताओं को समाहित करना आवश्यक था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे प्रजातंत्र का अपमान मानते हुए बयान दिया कि 'देश का संविधान सभी का है,' और ऐसे आयोजन में सभी को शामिल किया जाना चाहिए।
समारोह के दौरान, राष्ट्रपति मुर्मू और प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने संविधान के मूल्यों की महत्ता और उन्हें बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि संविधान हमारे लोकतंत्र की रीढ़ है और हमें इसे समझने और पालन करने की जरूरत है।
विपक्ष के नेताओं को यह बात काफी नागवार गुजरी कि संविधान की बात करते हुए सरकार ने विपक्ष को किनारे रखा। उनका मानना है कि यह एक ऐसा मंच था जहां सभी राजनीतिक विचारों को एकजुट किया जाना चाहिए था, न कि केवल एक पक्ष की आवाज को सुनने का।
इस निर्णय के बाद संसद में कई पक्षों से गंभीर प्रतिक्रियाएं आयी हैं। विपक्ष का आरोप है कि यह कदम केवल एक विशेष राजनीतिक विचार को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया। विपक्ष के नेताओं ने कहा कि ऐसे समारोह में सभी दलों के प्रतिनिधानों को बोलने का अवसर मिलना चाहिए, जिससे कि संविधान का असली अर्थ और भावना जन-जन तक पहुंचे।
संविधान दिवस का आयोजन हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों को मान्यता देता है। यह हमें याद दिलाता है कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। हाल के दिनों में, संविधान की व्याख्या और उसकी प्रासंगिकता पर कई बहसें हुई हैं। ऐसे में, यह दिन संविधान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और उसका संरक्षण करने की जिम्मेदारी को दोबारा दोहराने का अवसर प्रदान करता है।
इस प्रकार के समारोह में सभी राजनीतिक दलों का समावेश और भागीदारी संविधान की भावना को उजागर करता है। जब सभी नेता एक मंच पर इकट्ठे होते हैं और विविधता के साथ संविधान का जश्न मनाते हैं, तो यह राष्ट्र के एकीकृत स्वरूप को प्रदर्शित करता है। विपक्ष ने सरकार पर यह आरोप लगाया कि उसे संविधान दिवस की वास्तविक महत्व को समझने की आवश्यकता है।
जैसा कि देश आगे बढ़ रहा है, इस प्रकार के आयोजन हमें संविधान के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का पुनः स्मरण कराते हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने संविधान को केवल एक दस्तावेज के रूप में न देखें, बल्कि इसे जीयें और अपने दैनिक जीवन में उसे आत्मसात करें।