आजकल बाजार में जिस तरह के उतार-चढ़ाव दिख रहे हैं, उसने निवेशकों की रातों की नींद उड़ा दी है। डॉव जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज (Dow Jones) के फ्यूचर्स में हल्की मजबूती जरूर दर्ज हुई, लेकिन गहरा वैश्विक शेयर बाजार अपने ही डर और अनिश्चितताओं में उलझा है। ग़ौर कीजिए, इजरायल-ईरान तनाव ने न केवल पश्चिमी दुनिया, बल्कि एशियाई निवेशकों की समझदारी और जोखिम लेने के हौसले की भी कड़ी परीक्षा ले ली।
जापान के निक्केई 225 सूचकांक में 0.21% की मामूली तेजी जरूर दिखी, लेकिन एशियाई बाजारों में डॉक्टर जैसे ठंडे रुख के साथ ही निवेशक हर पल नए घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं। दूसरी तरफ अमरीकी बाजार की बड़ी कंपनियों जैसे माइक्रोसॉफ्ट, एपल और अमेज़न के शेयरों में हल्की गिरावट दर्ज की गई। टेक्नोलॉजी से जुड़े ये दिग्गज आम तौर पर बाजार की दिशा तय करते हैं, मगर इस बार हर कोई सतर्क दिख रहा है। इस बार तेजी की अगुवाई टेक कंपनियों ने नहीं, बल्कि पुरानी पारंपरिक कंपनियों ने की।
अगर क्रिप्टो सेक्टर की बात करें तो कॉइनबेस और बिटकॉइन माइनिंग क्षेत्र की MARA होल्डिंग्स जैसी कंपनियों ने भी गिरावट दिखा दी। कभी क्रिप्टो में पैसा लगाने वाले निवेशकों को लगता था कि ये अस्थिर बाजारों में ज्यादा सुरक्षित हैं, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं।
तेल की कीमतें सोमवार की गिरावट के बाद फिर उभर आईं। पश्चिमी एशिया में अनिश्चितता की वजह से कच्चे तेल की कीमतें एक झटके में ऊपर चढ़ जाती हैं, जिससे ग्लोबल इनवेस्टर्स और अर्थव्यवस्थाओं पर सीधा प्रभाव पड़ता है। तेल की बढ़ती कीमतें भारत और बाकी विकासशील देशों के शेयर बाजारों को अपनी चपेट में ले लेती हैं, क्योंकि इससे महंगाई और चालू खाते का घाटा बढ़ने का डर रहता है।
अमेरिकी 10 साल की ट्रेजरी यील्ड 4.40% पर स्थिर रही। इससे साफ है कि निवेशकों में रिस्क लेने को लेकर हिचक बनी हुई है—बॉन्ड में पैसे लगाने का मतलब है कि लोग अभी सुरक्षित निवेश को ही बेहतर मान रहे हैं। उधर, सोने की कीमत में मामूली गिरावट देखी गई है। ऐसा तब होता है जब दुनिया में अस्थिरता और चिंता थोड़ी-बहुत कम होती है; निवेशक धीरे-धीरे जोखिम उठाने को तैयार होते हैं, तो सेफ हेवन एसेट यानी गोल्ड की चमक कुछ कम हो जाती है।
भारत में निफ्टी और सेंसेक्स की शुरुआत लाल निशान में रही। बाजार खिलाड़ी विश्व स्तर पर फैली अनिश्चितता से परेशान दिखे। विदेशी निवेशकों की बिकवाली, महंगे कच्चे तेल और रुपए में कमजोरी ने भारतीय शेयर बाजारों पर दबाव बढ़ाया। फाइनेंस, ऑटो, आईटी और फार्मा सभी सेक्टरों का मिजाज मंदा रहा।
इन हालातों में एक आम निवेशक के लिए यह समझना मुश्किल हो गया है कि पैसा कहां लगाएं—टेक, क्रिप्टो, या पारंपरिक स्टॉक्स में। बाजार कब स्थिर होंगे और किस दिशा में जाएंगे, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।